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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/८४

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शिवसिंहसरोज


जितिं झाँई ते लह्यो हरन गुन हरि सो राधा ।
नागर नेक निहारि हरो मेरी भववाधां ॥ १ ॥
तीरथ तजि हरि राधिका तन घुति करि अनुराग ।
जिदि ब्रज–केलिन कुंज–भग पंग पंग होत प्रयाग ॥
पग पग होते प्रयाग सितासिंत जावक लागे ।
गंगा जमुना सरस्वती लज्जित तिन आगे ।
रस अनुराग सिंगार प्रेम के वरन चरन भजि ॥
ब्रज निकुंजमंग लोटि परयो रज सब तीरथ तजि ॥ २ ॥
तजि तीरथ सब वेदपथ,जुगल चरन अनुराग ।
गंगाधर श्रुति घर लुटत,तिन्ह रज होत संभांग ॥ १ ॥
कर मुरली वनमाल उर, सीस चंद्रिका मोर ।
या छवि सों मो मंन बसौ निसिदिन नंदकिसोर ॥ २ ॥

१३३. गुलाल कवि

कोह मेहकर लोहंकार ससिंका है कैधौ गंसिका है विषम विहंगम देराज कीं । कारीगर काम की कुदाँलिका नवीन कैधौ पालिका प्रवीन सरनागतमसमाज की ॥ कहत गुलाल स्वच्छ घारिनी सुधा कीं मति-हारिनी सुनी है सुनासीरंगजराज की । लौहअहिचुंब को प्रसारन प्रकुंच वदौ देवदुखंमुच उंच–वुंच खगराज की ।।१।। फुरूहरू फूलन मैं फहर फहर होत लहर लहर होत हीये सुरराज के । सहज उठान पर्धमान की झकोरै जोरै तोरै तरु फोरै गिरिंदरन दराज के ।। कहत गुलाल दीह , दिग्गज दपेटे परे बखर खखेटै हैं खरेटे दिनराज के । करत अंपच्छ प्रतिपच्छिन ततच्छ-पच्छी के सपंच्छ बंदों पंच्छ पच्छिराज के ॥.२ ॥ कैसी अलि राजै अलिअवलि अंवाजै आजु सुमन सुमन राजै छिन छिन छुकै ये । कहत गुलाल और सालन


१ महावर । १ कुदार । ३ ऐरावत । ४ गरुड़ । ५ हंचा । ६ तत्क्षण ।