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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/८७

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शिवसिंहसरोज


हैं ।। २ ॥ सोभित सँवारे हैं सनेह सुखमा समूह सुख सर सीले सरसीले सीले थोकदार । चंचल चलाँक चारू चोयन चटक भरे चहँकै चमकै चलै सलज सरोकदार ॥ खाल कवि मधुप मतंग से मजेजन में मैन मतवारे मृग मीनन के सोकेदार । नूरभरे नमितें नमूदन न मूद नोने नागरि नवेली के नसीले नैन नोकदार ॥ ३ ॥ फूली कुंज क्यारिन मैं मालती मर्थक लसी पानि में लिये ते दुति चंपकनि लीनी क्यों। संग की सहेलिन की कटि जो निहारि देखौ मेरी दिनरात होतजात कटि छीनी क्यों ॥ ग्वाल कवि चुंबक अ- चानक दबाय हार माल को मिलाय पै सुबास रस भीनी क्यों। देखि नथुनी में रज राजत दुनी में वीर मेरी नथुनी में चुनी तीनि

पोहि दीनी क्यों ॥ ४ ॥

( यमुनालहरी )

दोह―संवत निधि ऋषि सिद्धि सेसि, कार्तिकमास सुजान ।
पूरनपासी परमप्रिय, राधा हरि को ध्यान ॥ १ ॥

कवित्त आनभरी आंधिक कृसानभरी पापिन को दानभरी दरिघ प्रमान मान कमु ना । तेजभरी मंजु त मजेजभरी रीझभरी खीझ भरी दूतन को दाहै दौरि समुना ॥ ग्वाल कवि सुखद प्रतीतिभरी रीतिभरी परम पुनीतभरी मीतभरी भ्रमु ना। जंगभरी जमते उमंग भरी तारिवे को रंगभरी तरल तरंग तेरी जमुना ॥ १ । ॥

दोहा―वासी वृंदा विपिन के, श्रीमथुरा सुख बास ।
श्रीजगदंब दई हमै, कविता विमल विकास ॥ १ ॥
विदित विप्र बंदी विसद, वरने बयास पुरान ।
ता कुल सैबाराम को, सुत कवि ग्वाल सुजान ॥ २ ॥

कवित। भूरिक भुराई हिय भौन भरत तऊ भूलत न भामिनि


१ शोक देनेवाले । २ झुके हुए । ३ वहुत ।