ठाढे उदितनरायन की नजरि न पावते । भूप औ उजीरन के कह
को इरादे ज्यादे जहाँ साहिजादे पाँय प्यादे चले थावते ॥ १ ॥
ऊँचे भूरि कद के समूचे विन्दुहद के थहावत समुद्र के समुद्र
के नहर के । तोरै तरिवर के विथोरै गिरिवर के न जोरै परवर
के समर के सवर के ॥ भनत गनेस कासी केस के गजेस बेस खैचै
दिनकर के सु कर के निकर के ॥ काँपै थरथर के न थिर के रहत
थाक कुंजर कुतर के कुतर के कुतर के ॥ २ ॥ नाभी सर बीच मन
बूड़त आनंद होत ऊवत न नेक यो उदोत कर खूवी है । त्रोंन
पल माँह नैन बान जे सुजान मारै देखी बिन चैन है न चित
गति ऊवी है ॥ भनत गनेस ब्याज आइ कै उरोज ईस कंठ स्याम-
ताई सीस पाई हूबहूवी है । बदन तरीफ वैन कहतै न हद होत
प्यारी के बदन वीच एतनी अजूबी है ॥ ३ ॥ सीसा के महल वीच
कहल हिमाचल की पहल तुलाई बर्फ चहल कसाता में । चंदन
सो लागत कुरंगेंसार आंगन में अगिनि अँगीठी जिमि बारि हौज-
साला में ॥ राजत गलीचा ऊन सीतल सेवारतूल दीपक नछत्र से
गनेस रतियाज्ञा में । वाला उर वीच सीत माला सी जुड़ाति ।
जाति पाला सम लागत दुसाला सीतकाला में ॥ ४ ॥ छोड़त न
पच्छ स्वच्छ लपटीं लता जे वृच्छ छोड़त न पच्छी पच्छ पच्छ
पच्छ दोए हैं । छोड़त न नारी नर छोड़त न नारी नर अंग भंग
जोरत जुराफा साफ जोए हैं ॥ भनत गनेस कासमीर कासमीरन
ते पीरन वितीत सीत भीत सवै भोए हैं । या ते संक मानिकै हेमंत
में अनंत अंत प्यारी परंजक लें इकंत कंत सोए हैं ॥ ५ ॥
बारिज सो मुख मीन से नैन सेवार से बारन की सुखदासी ।
१ बढ़े । २ तरकस । ३ पलक । ४ कस्तूरी । ५ सेवार के तुल्य ।