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शिवसिंहसरोज

जाये जु व्यास खेवट्टिनी दुर्वासा आासन डिग्यो

कवि गीध कहैं सुनु रे गुनी कोई न कृष्ण निर्मल गढयो ॥१॥

६४५ गड डु कवि

छप्पै

हंसहि गज चढी चल्यो, करी पर सिंह विरज्जै।
सिंहहेि सागर धरयो, सिंधु पर गिरि है सज्जै ।।
गिरिवर पर इक कमल, कमल पर कोयल बोलै ।
कोयल पर इक कीर, कीर पर मृग हू ढोलै ।।
ता ऊपर सिसु नाग के सुनि सुदिन फनिय धारे रहै । ।
कवि गडडु कह गुनिजनन सों सु हंस भार केतो सहै ।। १ ।।
मरै वैल गरियार, मरै वह कट्टर टंटटू ।
मरे हठिली नारि, मरै वह पुंरूप निखट्टू ॥
सेवक मरै सु तौन, जौन कलु समै न सुज्झे।
स्वामी मरै जु कौन, जौन सेवा नहिं वुज्झे॥
जजमान सुम मरि जायं तौ काहैिं सुमिरि दुखं रोइये ।
कवि गडडु कहै मरि जाय तौ, जाहि मुए सुख सोइये ॥ २ ॥

१४६, गुरदीन रय कवि पैंतेपुरवाले


कल गुंजत कुंजन पुंज मलिद पियै मकरंद आनंद भरे ।
दुम बौरत केलिया कुकै करै वहै सौरभ सीरी समीर हरे ।।
वहैिं तंत वसंत को भावै नहीं गुरदीन जऊ लसै कंत गरे ।
निसिबासर नींद औ भूख हरी मुख पीरी परी दलपीरे परे ॥ १ ।।
१४७श्रीगुरुगोबिंदसिंह शोड़ी शिष्युमत के कर्ता

आनंदपुर पटना निवासी

( प्रन्थ साहव नाम ग्रन्थ )

छप्पै

चक्र चिह्न अरू वरन जाति अरु पाँति पाप जेहैिं ।


१ मार खाकर भी न चलनेवाला ; हरमज़ादा । २ उद्योगधंधान करनेवाला