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शिवसिंहसरोज


रूप रंग अरु रेखभेप कोड कहि न सकत कहि ॥
अचलमूर्ति अनुभव प्रकास अमितो कहि सज्जै ।
कोटि इंद्र इन्द्रानि साह-साहान भनिज्जै। ॥
त्रिभुवनमहीप सुर नर असुर नेति नेति वेदन कहत ।
तब सर्व नाम कथये कवन करम नाम वरनत मुमत ॥ १ ॥

सवैया

स्त्रावग सुद्ध समूहं सिंधानक देखि फिरयो धरि जोग जती के । सूर सुरादन सुद्ध सुधादिक संत समूह अनेक् मती के ॥ सारही देस को देखि रहो मत कोउ न देख़त मानपती के । श्रीभगवान की भाय कृपाहु ते एक रती विन एक रती के ॥ २ ॥ माते मतंग जरे ज़र संग अनूप उतंग सुरंग सँवारे । कोटि तुरंग कुरंगहु सोहंत पौन के गौन को जात निवारे ॥ भारी भुजान के भूप भली विधि नावत सीसन जात विचारे । एते भये तौ कहा भये भूपत्ति अंत को नाँगे ही पाँय सिधारे ॥ ३ ॥

१४८ गुलामराम कवि

सोम जो कहौ तौ कलानिधि को कलंकी सुन्यो कंजसम कहौ कैसे पंक को न नद है । काममुख सरिस वखानिये जु राममुख सोऊ न वनत देहरहित मदन है ॥ अमल अनूप आधिव्यधि ते विहीन सदा वानी के विलास कोटिकलुपंकदन है । बदत गुला– मराम एकरस आठोजाम सोभा को संदन रामचंद्र को बंदन है ।। १ ॥ घरा घन घाम वाम सोदंर सुहद संखा सेवक समूह आप पुरुष प्रमाथीं हैं । वाजी वर वानि है बल हूं हजारन है गाढ़े गढ़वासी वीर मंहारथी मांथी है ॥ लवौ ज्यों अचानक सचानक गहैगो वांज प्रान की परैगी तोहेिं लेत हाथी हाथी है । अदत गुलामराम कोंऊ तौ न आवै काम राखा जौन हाथी तौन साँकरे को साथी है ।। २ ॥


१ स्त्री । २ सगा भाई । ३ घोढ़ा । ४ हाथी । ५ सेना । ६ वटेर ।