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शिवसिंहसरोज


१४३. गुलामी कवि

ठारह पुरन चारि वेद मत सास्त्रन को ग्रंथनि सहस्र मत राम जस वै गये। पाप को समूह कोटि कोटिन सिराने धर्मराज समुहांन के कपाट द्वार दै गये ॥ भनत गुलामी धन्य तुलसी तिहारी वानी प्रेमसानी भक्ति मुक्ति जीवन सु कै गये । जोगसुख ब्रह्मसुख लोकसुख भो- गमुख एते सुख सुकृत गोसाई लूटि लै गये ॥ १ ॥

१५०गुरुदत्त कवि प्राचीन ( १ )

वाजत नगारे बीर गाजत निसान गहे गुरुदत्त तेज को अगा- रो तेखियतु है । कापै कोप कीन्हो रावसिंहजू को नंद आजु नैन अरु कान लाल रंग लेखियतु है ॥ सिंह सो समर पैठि सत्रुन की सेना पर राव सिवसिंह वीररूप पेखियतु है । सनमुख भाई सो तिरोही की फिरोही रन भेदी जा सिरोही सो गिरो ही देखियतु है ॥ १ ॥ कवहूँ तौ सांख्य औ पतंजलि में ठिठुकत थाँभत मि- मांसा की विसेप विधिवत की । कवहूँ तौ न्याय गहि द्विविधे वतावै अरु कवहूँ तौ गावै एक सत्ता ततसत की ॥ कैसे करि पावै तोहि ऐसे तुम दुरलभ कही गुरुदत्त याते गति है प्रनत की । थकि थकि जात व्यास हू की पैनी मति जहाँ उतरति चढ़ति निसेनी पट मत की ॥ २ ॥ बावो भौंर कठिन परोसी मच्छ कच्छन को गुरुदत्त मन बनमाली सो लहत है । नैनन के वान वैन झंकन झकोरन सो तोरो सील बादवान जोरो नां रहंत है ॥ कहाँ लौ छिपाऊँ आली मृदुल छमाहू तापै केवट पतिव्रत सो धीर ना धरत है । स्याम-छवि-सागर में लोभ की लहरि बीच लांज को जहाज आज बूड़न चहत हैं ॥ ३ ॥


 समर्थन

१ तुलसीदास । २ दो तरह । ३ सीढ़ी।