पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७५
शिवसिंहसरोज


१५१ . गुरुदत्त कवि, मकरंदपुरवाले (२)

यह बंधु अहै बड़वानल को नथमोती यो ज्वाल से जागत है । रह सीस के फूलहु ताप करे तन नागर मो विप पागत है । मृदु हार हिये कसकै गुरुदत्त कठोर उरोजन लागत है । यह दाग कपोलन में सितलान को दाग करेजे मो दागत है ॥१।।

१५२. गजराज कवि उपाध्याय बनारसी
( वृत्तहारपिंगल )

सूने अवास में पाइ कै वालम वाल विनोद के वृंद बढ़ावै। छंद कवित्त पढ़े बहुतै गजराज भनै सुर पंचम गावै ॥ कुंज विलोकनि कोरन सो मुसकानि महा छवि छाक छकावै । है निरसंक भरो चहै अंक में बालम वंक पै अंक न आवै ॥ १ ॥

१५३. ग्वाल प्राचीन (२ )

कारी घटा कामरूप काम को दमामो वाज्यो गाज्यो कवि ग्वाल देखि दामिनि दफेर सी । लपकि झपकि आयो दादुर सुनायो सुर हमैं हू विरह सखि मदन की रेर सी ॥ वालम विदेस बसे चातक के बोल कसे ज्यो ज्यो तन दहै त्यों त्यों औरै हरि बेर सी ।बूँदन को दुन्द सुनि आँखें मूँदि मूँदि लेत आयौ सखी सावन सँवारे समसेर सी ॥ १ ॥

१५४, गोविन्द आटल (१)
छप्पै

समय मेघ बरपंत समय सिर होइँ सवै फल । तरुनी पावै समयं समयई जाति देइ बल ॥ संमय सिद्धि हू मिलै समय पंडित हूं चूकै । समय प्रीति चित घटै समय सरवर हू सूकै ॥ कोउ द्वार जु आवै समय सिर समय पाय गिरिवरहि गिर । गोबिन्द अटल कवि नंद कहि जो कीजै सो समय सिर ।। १ ॥


१ घर । २ अनुसार । ३ सूखता है ।