पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/१६

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शिवा बावनी

शिवा बावनी कन्दमूल कन्द मूल एक प्रकार की गिना रेशे की जड़ होती है । कन्द सब जड़ों को कहते हैं । कन्दमूल शब्द का एक साथ ही प्रयोग होता है। भूपन भूषण, गहना । भूखन=भूख से । उतरि पलंग ते न दिया है धरा पै पग, तेज सगषग निसि दिन चली जाती हैं। अति अकुलाती मुरझाती न छिपातीं गात, बात न सोहातीं बोले अति अनखाती हैं। भूषन भनत सिंह साहि के सपूत सिवा, तेरी धाक सुने अरि नारी बिललाती हैं। कोऊ करें घाती कोऊ रोती पीटि छाती, घरै तीन बेर खाती ते वै बीन बेर खाती हैं ॥८॥ ___ भावार्थ भूषण करते हैं कि हे सिंह के समान बीर साह जी के सुपुत्र शिवा जी, आपका प्रताप सुनकर शत्रों की स्त्रियां व्याकुल हो रही हैं। जिन सुकुमार स्त्रियों ने कभी पलंग पर से उतर धरती पर पैर भी नहीं रक्खा था, अब वे भी डरके भारे रात दिन भागती चली जा रही हैं। व्याकुलता से उनका मुख सूख गया है। घबड़ाती हुई शरीर पर कपड़ा डालने का भी ध्यान नहीं करती हैं। उन्हें किसी की बात अच्छी नहीं लगती और कुछ बोलने पर फैंसला उठवी हैं। कोई कोई तो आत्मघात करती हैं। और कोई छाती पोट