पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१५
शिवा बावनी

शिवा पावनी M- ऐसी परी नरम हरम बादसाहन की, नासपाती खाती ते बनासपाती खाती हैं ॥१०॥ भावार्थ भूषण कहते हैं कि हे महाराज शिवाजी, माप का नाम सुन कर बादशाही घराने को बेगमें भय के कारण गुलाब का इत्र, चोवे का रस और कपूर यह सब साधारण सुगंध को सामग्रियाँ भूल गई हैं। जो सुकुमारता के कारण पलंग से उतर कर ज़मीन पर पल भर भी पैर नहीं रखती थों; वे भूखी प्यासी बन बन मारी मारी फिर रही हैं। घबड़ा- हट में न वे अपने हार और न केश सम्हालतो हैं। बादशाहों के जनाने को ये स्त्रियाँ ऐसी दीन हो गई है कि वे नासपाती और मेवे के स्थान में सागपात खा रही हैं। टिप्पणी यहां यमक अलंकार है। चोत्रा एक प्रकार का मुगंधित द्रव पदार्थ जो केसर कसरी भादि के बनाया जाता है । दारानियां । बार-बाल, केश । सोंधे को अधार किसमिस जिनको अहार, चार को सो अंक लंक चन्द सरमाता है। ऐसी अरिनारी सिवराज वीर तेरे त्रास, पायन में छाले परे कन्द मूल खाती हैं। पोषम तपनि ऐसी तपति न सुनी कान, कंज कैसी कली बिनु पानी मुरझाती हैं।