पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४
शिवा बावनी

... . . . . . .. - शिवा वावनी पांडुरी पँवार जूही सोहत हैं चन्दावत, सरस बुंदेला सो चमेली साजबाज है। भूषन भनत मुचुकुन्द बड़ गूजर हैं, बघेले वसंत सब कुसुम समाज है। लेइ रस एतेन को बैठि न सकत अहै, अलि नवरंग जेब चंपा सिवराज है ॥१८॥ भूषण कहते हैं कि कछवाह वंशी जयपुर नरेश कमल हैं, कबन्धज वंशी जोधपुर के राजा कदम्ब के फूल हैं, गौर क्षत्री लोग गुलाब हैं, उदयपुराधीश महाराणा कँटोली केतकी हैं, प्रमर वंशी पांडुरी है, चन्दावत राजपूत जूही हैं, राजसी ठाट वाले बँदेला लोग चमेली हैं, गूजर मुचकुन्द हैं और बघेले लोग बसन्त ऋतु में खिलनेवाले अन्य लब फूलों के समूह हैं। औरंगज़ेब रूपी भौंरा इन सब फूलों का पराग ले कर शिवाजी रूपी चम्पा के फूल पर बैठ भी नहीं सकता है, अर्थात् औरंगजेब ने इन सब राजाओं को परास्त कर दिया, किन्तु चम्पा की तीक्ष्ण गंध के समान प्रचंड प्रतापी शिवाजी के पास पहुँच भी न सका। टिप्पणी . यहां सम अभेद रूपक मनङ्कार है। इसका लक्षण छन्द १० में दिया है। बड़ी कठिनता से उसका रस खे पाता है, वैसे ही औरंगजेब बड़ी बड़ी आपत्तियां मेल कर राण को वश में कर सका था। (५) एक प्रकार का फूल, जिसके खेप से सिर को पीड़ा दूर होती है।