पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९
शिवा बावनी

शिवा बावनी आमिष अहारी मांसाहारी दे दे तारी नाचें, खांड़े तोड़े किरचें उड़ाये सव तारे से। पील सम डील जहां गिरि से गिरन लागे, मुंड मतवारे गिरे झुंड मतवारे से ॥२२॥ भावार्थ बोर वर शिवा जी ने बादशाहों की बराबरी करने का हौसिला किया। सारे देश को पराजित कर अपने राज्य की सीमा दिल्ली के दरबार से अलग ही काट ली। हठो मरहठों ने ऐसे कोई किलेवाले न छोड़े, जिन के हथियार न छीन लिये हो । मरहठे लोग बन में लुटेरों की भाँति घूमने लगे। रणस्थल में मांस भक्षण करनेवाले भूत प्रेत तालियाँ, बजा बजा कर नाचने लगे। मरहठों ने शत्रुओं की तलवारें, किरचे और बन्दूकें तार की तरह तोड़ ताड़ कर फेंक दी। हाथी के ऐसे मोटे शरीरवाले पहाड़ की नाई भरभरा कर गिरने लगे और मुसल्मानी मतवाले घमंडियों के सिर कट कट कर मदोन्मत्त लोगों के मुंडकी तरह गिरने लगे। टिप्पणी यहां पूर्णापमालकार है। जहां उपनाम, उपमेय, वाचक और धर्म स्पष्ट रूप से आते हैं, वहां पूर्णेपमालङ्कार होता है । इस छंद के चौथे चरण में यमक अलङ्कार भी है। 'पातसाह बादशाह । मवास-किला । बनजारे लुटेरे। तोड़-तोड़ेदार बन्दकें । तारे से तार से, अनुपास के लिए 'तार का 'तारे' कर दिया है।