पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/४८

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शिवा बावनी

शिवा बावनी टिप्पणी पुरहुत को पहारन के कुल पर-पुराणों में लिखा है कि पहले पहाड़ों में पंखे लगे रहते थे और वे उड़ सकते थे। पहाड़ों के अत्याचार से दुखी हो कर देवताओं ने इन्द्र से विनय की। इन्द्र ने अपने बज से उनके पंख काट डाले । तब से इन्द्र का नाम “पर्वतारि" पड़ा। यहाँ निदर्शनालंकार है । जहां भिन्नता रहते हुए भी दो वाक्यों का अर्थ समता-सूचक किया जाता है, वहां निदर्शनालंकार होता है । यहां 'गरुड़ को दावा सदा नाग के समूह पर' आदि वाक्यों की समता-जहां पातसाही तहां दावा सिवराज को'--वाक्य से की है। नाग-(१) सर्प । (२) हाथी। पुरहूत--इन्द्र। दारा की न दौर यह रारि नहीं खजुवे की, बाँधियो नहीं है किधौं मीर सहबाल को । मठ विखनाथ को न बास ग्राम गोकुल को, देव' को न देहरा न मंदिर गोपाल को ॥ गाढ़े गढ़ि लीन्हें और बैरो कतलान कीन्हें, _____ठोर ठौर हासिल उगाहत है साल को। बूड़ति है दिल्ली सो सँभार क्यों न दिल्लीपति, धक्का आनि लाग्यो सिवराज महाकाल को ॥३॥ (१) जिला फतेहपुर में विन्दको के पास खजुवा एक गाँव है । औरंग- ज़ेब ने संवत १७१६ में यहां पर अपने भाई शुमा को हराया था। (२) 'देव' शब्द से मोड़छा-नरेश बीरसिंह देव से भाशय है। इन्होंने मथुरा में 'केशवराय का देहरा' (मन्दिर) बनवाया था।