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पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/६१

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शिवा बावनी

hwaranana शिवा बावनी मारि करि पातसाही खाकसाही कीन्ही जिन, जेर कीन्हों जोर सों लै हद सब मारे की। खिसि गई सेखी फिसि गई सूरताई सब, हिसि गई हिम्मत हजारों लोग सारे की। बाजत दमामें लाखौं धौंसा आगे घहरात, गरजत मेघ ज्यों बरात चढ़े भारे की। दूलहो सिवा जी भयो दच्छिनी दमामे वारे, दिल्ली दुलहिन भई सहर सितारे की ॥४६॥ भावार्थ जिन्होंने बादशाही मिटा कर भस्म कर दी, सारे राजपू. ताने की सीमा बल पूर्वक नष्ट कर डाली और जिन के आगे हज़ारों बड़े बड़े बहादुरो का घमंड चूर हो गया, वीरता फिस हो गई और छक्के छूट गये, उन्हीं शिवा जी के बड़े बड़े नगाड़े और लाखों डंके बज रहे हैं, मानों बादल गरज रहे हो। शिवा जी की सेना मानों किसी बड़े भादमी की बरात है। दक्षिण में विजय के डंके बजानेवाले शिवा जी उस बरात में दूलह हैं और सितारे शहर की दुलहिन दिल्ली है। टिप्पणी खिसि गां-गिर गई । हिसि गई छूट गई, फारसी 'शब्द' हिरतन छूटना । धौंसा-हंका। डादी के रखैयन की डाढ़ी सी रहत छाती, बाढ़ी मरजाद जैसी हद हिन्दुवाने की।