पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/६६

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शिवा बावनी

शिवा बावनी हिन्दुन की चोटी रोटी राखी है सिपाहिन की, काँधे में जनेऊ राख्यो माला राखी गर में । मीडि राखे मुगल मरोरि राखे पातसाह, बैरी पीसि राखे बरदान राख्यो कर में। राजन की हद्द राखी तेग बल सिवराज, देव राखे देवल स्वधर्म राख्यो घर में ॥५१॥ भावार्थ शिवा जी ने अपनो तलवार के बल वेदों और पुराणों को लुप्त न होने दिया। सारवान राम नाम को सुन्दर जिह्वा रूपी घर में रखा । हिन्दुओं की चोटियाँ और सिपाहियों की रोटियाँ (जीविका ) तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत और गले में माला सुरक्षित रखी। मुगलों का मईन और बादशाहों का गर्व खर्व कर शत्रुओं को चूर्ण कर दिया। अपने हाथ चाहे जो वरदान देने का अधिकार रखा। शिवाजी ने अपनी तलवार के बल से ही राजाओं के राज्यों को मर्यादा, मन्दिरों में देवता और घर में अपना धर्म सुरक्षित रखा। टिप्पणी यहां पदार्थाटत दीपक अलङ्कार है । इसका लक्षण छन्द ४६ में दिया है। रसना=जिह्वा । गरगला । तेग-तलवार । देवल देवालय मन्दिर । सपत नरेस चारो ककुभ गजेस कोल, कच्छप दिनेस धरै धरनि अखंड को।