पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१०९

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शृङ्गारनिर्णय । 2 फिरि भागि के । दौसी में गुलाब जल मोमो में मगहि सूखै सीसौ यो पघिलि परै अंचल सो दागि के ॥ ३२४ ॥ छमता यथा सवैया। कोज क है कर हाटक तंत में कोज परा. गन मैं उनमानी । ढूंढ रौ मकरन्द के मैं दास कहै जलजा गुन ज्ञानी ॥ छामता पाय रमौर गई परजक कहा करै राधिका रानौ कौल में दास निवास किये हैं तलास किये डूं न पावत प्रानी ॥ ३२५॥ जड़ता दसा दोहा। जड़ता में सब आचरन भूलि जात अन्यास तम निद्रा बोलनि हँसनि भूख प्यास रसवात ॥ यथा सवैया। बात कहै न सुनै कछु काहू सो वा दिन तें भर्दू वैसियै सूरति । साठो घरौ परजंक परी सु निमेख भयो अखियानि सो घूरति ॥ भूगल न प्यास न काहू को चास न पास तीन सो दास