पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१३

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शृङ्गारनिय। दूरही ते नमुक नजर-मार पावतहीं लचकि ल. चकि जात जी मे जान करि तू ॥ तेरो परिमान परमान के प्रमान है पैदास कहै गरुमाई आ- पनी सँभरि तू । तूती मनु है ये वह निपटही तनु है। लंक पर दौरत कलंक सो सो डरि तू ॥३६॥ उदर वर्णन। कैसौ करिये अति अदभुत निकाई भरी छामो- दरी भातरी उदर तेरो पान सो। सकल सुदेस अंग बिहरि थकित के कौवे को मिलान मेरे मन के मकान सो ॥ उरज सुमेरु आगे बली बिमल सौढ़ी सोमा सरनाभि सुंभ तीरथ समान सो। हारन की भांति आवा-गौन को बंधी है पांति मुकुत सुमनबन्द करत जहान सो ॥७३॥ रोमावली वर्णन-सवैया । बैठौ मलीन अली अवलो कि सरोज कलीन सो है विफली है । संभु लगी बिछुरीही चली किधी नागलली अनुराग-रली है ॥ तेरी अली यह रोमावलौ कै सिँगारलता फल बेलि फली