पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/१८

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शृङ्गारनिशीय। -- किल कौर कपोतन को कल बोलनिखंडनी मानो। बाल प्रबौनी को बानी को बानक बानी। दियो तजि बौन को बानो ॥ ४८॥ कपोल वर्णन कविता जहां यह श्यामता को अंक है अयंक में तहाई स्वच्छ छविहि सुछानि बिधि लौन्हो है। तामें मुख जोग सबिसेख बिल गाय अबसे व सों विसेख सर्वाङ्ग रचि दोन्ही है। आनन को चारु. ता में धारूहूं तें चारु चुनि ऊपरही बाख्यो विधि चातुरी सो चीन्हो है। लासों यह अमल अमोल सुम गोल डोल लोलनेनी कोमल कपोल तेरो कोन्हो है ॥ ४६॥ श्रवणवर्णन सवैया। दास मनोहर आनन बाल को दोपति जा को दिपै सब दोपै । श्रौन सोहाये बिराजि रहे मुकताहल-संजुत ताहि समोपै ॥ सारी महीन सो लोन बिलोकि विचा हैं कवि के अवनी- पै! सोदर जानि ससीही मिलौ सुत संग लिये मनो सिन्धु मै भोपै ॥ ५० ॥ ।