पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शृङ्गारनिर्णय। Ĉ मयंक जवे करतार बिचार हिये गहि । भेटत मेटत है धनुषाशति मेचकताई को रेख गई वहि । फेर न मेटि सक्यो सविता कर राखि लियो अतिही फविता लहि ॥ ५३॥ भूभा चितवनि बगान कवित्त । जै बिन पनच बिन कर को कसीस बिन चलत इमार यह जिनको प्रमान है। आखिन भड़त आय उन में गड़त धाय परत न देख पौर करत अमान है। बंक अवलोकनि को बान औरई विधान कज्जल कलित जामे जहर समा- न है। तातें बरबस बेधै मेरे चित चंचल को भामिनी ये भौहें कैसी कहर कमान है ॥५४॥ भाख वर्णन सवैया। बैठक है मन-सूप को न्यारो कि प्यारो अ- खारो मनोज बली को ! सोभन की रंगभूमि सुभाव बनाव बन्यो कि सोहागयली को । दास बिसेख के तंचिका यंत्र को जातें भयो बस भादू हली को। भाग लसै हिमभानु को चारु लिलार किधौं वृषभानलली की ॥ ५५ ॥