पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३०

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शृङ्गारनिर्णय। २६ धीर धस्यो परै पौरो है पायो पियारी को प्रा. । जढ़ा यथा सवैया। इहि आननचंद मयूखन सों अँखियान को भूख बुझैबो करी । तन स्याम सरोरुह दास सदा सुखदानि भुजानि भरैबो करी ॥ डर दास न सास जेठानिन को किन गांव चवाव चलैबी करौ । मनमोहन जो तुम एक घरौ इन भांतिन सो मिलि जैबो करी॥ ३ ॥ उद्धा वक्षन दोहा। उदबुद्धा उदबोधिता है परकिया मिसेखि निज रोझे सुपुरुष निरखि उहुद्धा सो लेखि ॥ अनूढानि को चित्त जो निबसै निहचल प्रौति। तौ स्वकियन की गति ल है सकुंतला को रीति॥ प्रथम होडू अनुरागिनी प्रेम असता फेरि उहुदा तेहि कहत हैं परम प्रेम रस घेरि ॥८६॥ अनुरागिनी यथा सवैया । पाय परौं जगरानी भवानी तिहारी सुनी