पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३२

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शृङ्गारनिय । हुछा यथा कबिता . साली बड़ारिनि बड़ीयै हितकारिनि हौं कैसे कहीं मेरे कहे मोहन पैजाबै तू । नैन को लगनि दिन चैन की दगनि यह प्रेम को पगनि चितलगनि सुनावै तू ॥ यहज ढिठाई जो कहौं कि मोहि ले चलु रो कान्हही को दास मेरे मौन लागि ल्याव तू ॥ यथोचित देखि चिन देखि वृत देखि चित देहि तित माली जित मेरो हित पावै तू ॥ ६॥ उदंशोधिता लक्षन दोहा । जा छवि लखि नायक कोज लावै दूतीघात । उद्योधिता मो परकिया वह असाध्य कहि जाता भेद। प्रथम असाध्या सो रहै दुख साध्या पुनि छोय साध्य भए पर आपही उद्बोधिता सु होय ॥ असाध्या अन्दा यथा कवित्त । नौ भोड़ी भोंड़ी बातें क है लौंडी हु कनौड़ी छोड़े द्योढ़ौड़ी के जात भीन ते कढ़त