पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४३

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४२ शृङ्गारनिय। सुजानन के उर जात थली उरजातन धेरे । स्थामता बीच दै अङ्ग के रङ्ग अनङ्ग सुढार प्र- कार सो फेरे ।। १२४ ॥ स्वकीया मुग्धा यथा-कवितः । घटतौ दूक होन लागी लङ्ग बासर को केस सम बेस को मनोरथ फलौन मो इढि चले कानन लौं नौके नैन खंजन औ बैठि रहिबे को जनु सैसव अलौन भो । साँझ तानापन बिकास निरखत दास आनंद लला के जैनकैरव कलीन भो । दुलही बदनद्वन्दु उलही अनूप दुति सौति मुख-अरबिन्द अतिही मलौन भो ॥ १२५ ॥ --यथा सवैया । उकसौहे. भए उह मध्य छटो सौ चंचलता अखियान लगी। अंखिया बढि कान लगी अस कानन कान्ह कहानी सोहान लगौं ॥ बिन का- जहु काज हु दाम लखो जसुदा गृह भावन जान लगौ । ललिताहु सों नेक बतान लगौ रसवात सुने सकुचान लगी ॥. १२६ ॥ परकीया मुग्धा-