पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४५

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शृङ्गारनिय। लख्यो कबहूं मैं अचम्भो भयो वहि औसर जैसो। सेद बढ्यो त्यों लग्यो तन कंपन गेम उठ्यो यह कारन कैसो ॥ १२६॥ जातयोबना यथा। भानन में मुसकानि सोहावनौ बङ्गुरता अँखि- यान छई है। बैन खिले मुकुले उरजात जको बिध की गति ठौन ठई है ॥ दास प्रभा उछलै सब अंग सुरंग सुबासता फैल गई है। चन्दमुखी तन पाय नवीनो भई तरुनाई अनँदमई है ॥ ज्ञातयौबना ख कीया। दास बड़े कुल को वतियां बतियां परबौनी सो जीवन ज्वैहै । बाहिर हैहै न जाहिर और अनाहिर लोग को छाहन छ है॥खेलन दै भरि साध सखी पुनि खेलिबे जोग येई दिन है है । फेर तो बालपनो अपनो रोहमै लषनो सपनो सम लैहै ॥ १३१ ॥ ज्ञातयौवना परकीया-कवित्त । मन्द मन्द गौन सो गयन्दगति खोने लगी