पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४६

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शृङ्गारनिर्णय। बोने लगौ विष सो अलक अहिकोने सौ। लंक नवला को कुच-भारन दुनोने लगी होने लगी तन की चटक चारू सोने सौ तिरछे चितौने सो बिनोदनि बितौने लगी लगी मृदु बातनि सुधारस निचो ने सौ। मौने मौने सुन्दर सलोने पद दास लोने मुख को चटक लै लगन लगी टोने सौ ॥ १३॥ । मध्या लक्षण -- दोहा। नवजोबन पूरनवती लाज मनोज समान तासो मध्या नायिका बरनत सुकवि सुजान ॥ साधारण सध्या यथा- सवैया । है कुचभारनि मन्दगती करै माते गयन्दन को मद यूरो । आननओप अनूप लखे मिटि जात मय-गुमान समूरो ॥ दास भरौ नख तें सिख लाज पै काम को साज मिलो किये पूरी। काम के रंग मनो ऍगि अंग दई दयो लाज को रोगन करो।। १३४ ।।