पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/५५

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शृङ्गारनिर्णय। स्वकीया वासकसज्जा यथा कबिस जानि जान्दि अावै ग्यारो प्रीतम बिहार- भूमि मानि माजि मंगल सिँगारन सिँगारती दास हग कंजन बँदनवार तानि तानि छानि छानि फूले फूले सहि सँवारती ॥ ध्यानही में आनि आनि पोको गहि पानि पानि ऐचि पट तानि तानि मैन मद भारती । प्रेम गुन गानि गानि पौउ बनि सानि सानि बानि बानि खा- नि खानि बैनन विचारतो । १६० ॥ परकीया बासकमज्जा सवैया। भावतो आवतो जानि नवेली चमेली कुंज जो बैठती जाय कै । दास प्रसूनन सोन- जुही करै कंचन सौ तनोति मिलाय के । चौंकि मनोरथही हँसि लेन चलै पग लाल प्रक्षा महि छाय के। बौर करै कर वीर भारनि बलै हर छवि आपनी पाय के ॥ १६१ ॥ आगतपतिका बासकसज्जा दोहा । प्रियागम परदेस ते आमतपतिका भाउ है बासकमज्जाहि मै वहै बढ़े चित चाउ 1