पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/६

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शृङ्गारनिय । ५ को तुव थानन आनँद खाननि को सौं ॥ दास के प्राण को पाहरू तू यह तेरे करेरे उरोजन की सौं । तो बिन जीवो नजीबो प्रिया मुहिँ तेरई नैन सरोजन को सौ ॥ १५ ॥ दक्षिण लचए --दोहा। बहु नारिन को रसिक पै सब पै प्रीति समान । बचनक्रिया में अति चतुर दच्छिनलच्छन जान ॥ यथा सवैया । सौलमरी अँखियान समान चितै सब को दुचिताइ को घाया। दास जू भूषन बास कियो सबही के मनोरथ पूजिवे लायक " एक हिं भांति सहा सब सो रतिरङ्ग अनङ्गकला सुखदायक। मैं बलि द्वारिकानाथ को जो इन सौरह से न. बलान को नायक ।। १७ ॥ दक्षिण उपपति यथा। आज बने तुलसीबन में रमि बास मनोहर नन्दकिसोर । चारिहु पास हैं गोपबधू भनि दास हिये मैं हुलास न थोर ॥ कौल उरोजवतौन को आनन मोहन नैन मै जिमि भोर। मोहन