पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/७३

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शृङ्गारनिर्णय जसमा दूती यथा सवैया । मोहि सो भूल भई सिगरी बिगरी सब आजु सँवार करोंगी । बौर को सौं बलबीर बलाय ल्यों आज सुखी दूकबार करौंगौ ॥ दास निसा लों निसा करिये दिन बूड़ते ब्यौंत हजार क- रौंगी। आज बिहारी तिहारी पियारी तिहार मैं होय की हार करौंगी ।। २१२ ॥ मध्यम दूतो यथा कवित्त । प्यारी कोमलांगी औ कुमुदबंधुबदनी सु. गंधन की खानि को क्यों सकत सताय हो . बेनी लखि मोर दौर मुख को चकोर दास खासनि को भौंर किन किन को बराय हो । वह तो तिहारे हैत अबही पधारे पै धौं तुमही बिचारी कैसे धीरज धराय हौं । है है काम पालकी बरसगांठि वाही मिस अब मैं गोपाल की सों पालकी मैं ल्यायहौं ॥ २१३ ॥ अधम दूती यथा सबैया। किल कंचन सौ यह अंग कहा कह रंग