पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९८

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शृङ्गारजिर्णय। एक प्रदीप सिखारी। मैं कन्यो मोहन राधे बहै हरि हेरि रहे पनि प्रेमन भारी । तातें तो ज बारही बार सराहत तोहि निसा गई सारी। या छबि चाहि कहाधौं करेंगे महा सुख घुञ्जनि कुञ्जबिहारी ॥ २८८ ॥ चित्रदर्शन यथा । कौनि सौ औंनि को हैं अवतंस कियो कहि बंस कृतारथ काको। नाम है पावन सन्म भये किन पातिन के अधरा अधरा को ।। दास दै बेगि ३ताय अली अब मौन न प्रान निदान है वाको । सोहै कहा बद्ध रूप उजागर मोहै हियो यह कागजा को ॥ २६ ॥ श्रुतिदर्शन -- दोहा । गुन्न सुने पत्री मिले जब तब सुमिरन ध्यान ! दृष्टिदरम बिन होत है श्रुति दरसन यों जानि। यथा कविस जब जब रावरो बरमान करें सोजतब तब छवि ध्यान के लखोई उन मानते। नाले पति- या न पलियान को प्रबोनसाई बौन-सुर लोन ।