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प्रकाश है ! जो प्रेमियों को आंख की पुतली से भी प्यारा है; जो अनंत विद्यामय है ‘सर्वेदायवचैकीभवंति' उस का और कौन रंग मानें ? हमारे रसिक पाठक जानते हैं किसी सुन्दर व्यक्ति की नयन में काजल और गोरे गालों पर तिल कैसा भलालगता है कि कवियों की पूरी शक्ति और रमज्ञों का सर्वख एक बार उस कवि पर निछावर हो जाता है; फिर कहिए सर्व शीभामय परमसुन्दर का कौन रंग कल्पना कीजिएगा ? समस्त शरीर में सर्वोपरि शिर है उस पर केश कैसे होते हैं ? फिर सर्वोत्कृष्टमहेश्वर का और क्या रंग होगा ? यदि कोई लाखों योजन का बहुत बड़ा मैदान को, और रात को उस का अन्त किया चाहो तो सौ दो सौ दीपक जलाओगे, पर क्या उन से उस स्थल का छोरदेख लोगे ? नहीं, जहां तक दीपों का प्रकाश है वहाँ तक कुछ सूझेगा फिर बस 'तमासा गूढ़सग्रे' ऐसे ही हमारे बड़े २ महर्षियों की बुद्धि जिसका भेद नहीं प्रकाश कर सकती उसे अप्रकाशवत् न मानें तो क्या माने ? श्री रामचन्द्र कृष्ण चन्द्रादि को यदि अंगरेजी जमानेवाले ईश्वर न भी मानें तोभी यह मानना पड़ेगा कि हमारी अपेक्षा उन से और ईश्वर से अधिक संबन्ध था फिर हम क्यों न कहें कि यदि उस पारत्पर का कुछ अस्तित्व हैं तो रंग यही होगा क्योंकि उसके निज के लोग कई एक इसी रंग ढंग के है अब आकारो का विचार कीजिए तो अधिकतः शिवमूर्त्ति लिंगाकार होती है जिस से हाथ पांव मुख नेत्र कुछ नहीं होते , सब