पृष्ठ:शैवसर्वस्व.pdf/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[ २६ ]

शिव मूर्ति क्या और कैसी है यह तो बड़े २ ऋषि भी नहीं कह सकते पर जैसी बहुत सी प्रतिकृति देखने में आती हैं उनका कुछ २ वर्णन किया गया यद्यपि कोई बड़े बुद्धिमान इस विषय में लिखते ती बहुत सी उत्तमोत्तम बाते निकलती पर इतना लिखना भी कुछ तो किसी का हित करेहीगा ! मरने के पीछे कैलाशधाम तो विश्वास की बात हैं हमने न कभी कैलाश देखा है न देखने वाले से भेंट तथा पत्त्रालाप किया है हां यदि होगा तो प्रत्येक मूर्ति पूजक को हो रहेगा ! पर हमारी इस अक्षर मयी मूर्ति को सच्चे सेवकों को संसार ही में कैलाश का सुख प्राप्त होगा ! इम में संदेह नहीं है । क्योंकि जहां शिव हैं वहीं कैलाश है तो अब हमारे हृदय में शिव होंगे तो हृदय नगर कैलाश क्यों न होगा ? हे विश्वपते ! कभी इस मनोमंदिर में विराजोगे ! कभी वुह दिन दिखाओगे कि भारतवासी मात्र तुम्हारे ही जय और यह पवित्रभूमि कैलाश बने !

किस प्रकार अन्य धातु भाषाआदि मुर्तियो का नाम श्री रामनाथ, बैद्यनाथ, अनन्देश्वर, खेरेश्वरादि होता है वैसे घूस अक्षरमया मुर्ति के भी कई नाम हैं शृदएश्वर , मंगलेश्वर , भारतेश्वर इत्यादि पर मुख्य नाम प्रेमेश्वर है अर्थात् प्रेम मय ईश्वर ! इन का दर्शन की प्रेमचक्षु के बिना दुर्लभ है । जब अपनी अकर्मण्यता और उनके उपकारों का ध्यान जायेगा तब अवश्य हृदय उमड़ेग और नेत्रों से अश्रुधारा वह चलेगा ! उसी धारा का नाम प्रेम गंगा है इन्हीं प्रेम गंगा के