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जब से स्नान कराने का महात्म्य है ? हृदय कमल चढ़ाने का अक्षय पुण्य है ! यह तो इस मूर्ति की पूजा है जो प्रेम बिना नहीं हो सकती हैं ! पर यह भी स्मरण रखना चाहिए कि जब मन में प्रेम होगा तभी संसार के यादत् मूर्तिमान तथा अमुर्तिमान पदार्थ शिवमूर्ति अर्थात् कल्याण का रूप निश्चित होंगे । नहीं तो सोने और हीरे की भी मूर्ति तुच्छ है ! यदि उससे स्त्री का गहना बनवाते ती उस की शोभा होती तुम्हें सुख होता भाई चारे में नाम होता विपत्ति में काम होता पर मूर्ति से तो कुछ भी न होगा ! फिर सृत्तिकादि का क्या कहना है वह तो तुच्छ हुई हैं ! केवल प्रेम ही के नाते ईश्वर हैं नहीं तो घर की चक्के से भी गए बीते ! यही नही प्रेम के बिना ध्यान ही में क्या इश्वर दिखाई देगा ? जब चाहें आंखे मूंद के अन्धे की नकलकर देखो अंधकार के सिवाय कुछ सूझे तो कहना ! वेद पढ़ने से हाथ मुंह दोनों दुखेंगे ! अधिक श्रम करोगे दिमाग में गरमी चढ़ जायगी ! अस्त ! इन बातों के बढ़ाने से क्या है, जहाँ तक सहदयता से विचारिएगा वहां तक यही सिद्ध होगा कि प्रेम के बिना वेद झगड़े की जड़ ! धर्म बे सिर पैर के काम ! स्वर्ग शेखचिल्ली का सहल और मुक्ति प्रेत की बहिन है ! ईश्वर का तो पता ही लगना कठिन है, ब्रह्मशब्दो नपुंसक अर्थात् जड़ हैं ! उस को उपमा आकाश से दी जाती हैं 'खम्ब ह्य' और अकाश है शुन्य ! पर हां यदि मनोमंदिर में प्रेम का प्रकाश हो तो सारा संसार शिव मय है क्योंकि, प्रेम ही