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खियां तक जीती अन्त आती रही हैं ! और शिल्य विद्या धर्म ग्रन्थ ( अर्थ वेद ) में भरी है ! जहां राजाओ और वीर पुरुषों तक की मूर्ति का आदर है वहां देवाधि देव महादेव की मूर्ती क्यों न पूजे ? यद्यपि आज कल अविद्या के प्रभाव से सब बातों के तत्व के साथ प्रतिमा पूजन का भी सत्य लोग भूल गए हैं पर जिन्हें कुछ भी इधर खता हैं वे इस लेख पर कुछ भी ध्यान देंगे तो कुछ भेद तो अवश्य ही पावैगे ।

यह सब लोग मानते हैं कि ईश्वर निराकार हैं पर मनुष्य अपनी रुचि और दशा के अनुसार उन के विषय में कल्पना कर दिया करते हैं । जिन मतो मे प्रतिमा पूजन का सदा महानिषेध है उन के धर्म ग्रंथों में भी भी ईश्वर के हाथ पांव नेत्रादि का वर्णन है फिर हमारे पूर्वजों के लेखों का तो कहना ही क्या है; जिन की कल्पना शक्ति के विषय में हम सच्चे अभिमान से कह सकते हैं कि दूसरे देश वालों को वैसो २ बातें समझनी ही कठिन हैं सूझञे श्चौ तो क्या क्षष्टा ! उन को छोटी २ बातों में बड़े २ आश्चय है ( एक विषय दुसरी पुस्तक में लिखा गया है ) फिर यह तो धर्म का अंग है इसका क्या कहना !

तनिक ध्यान देक् देखिए तो निश्चय कह उठिएगा कि हां बिम्बों ने पद्धिति पद्विन्त यह बातें निकाली यो कि ब्रह्म विद्या ; लोक हितैषिता और सहृदयता से जिस देश अर्थात

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* इंजील तथा कुरआन आदि ।