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श्यामास्वप्न

दिए जाता हूँ तुम इसके भीतर पाती लिखकर बंद कर देना और मेरे विश्वास-पात्र हरभजना को दे देना वह मेरे पास पहुँचा दिया करै या तो डाक द्वारा भेजा करेगा और मेरे भी उत्तर तुम्हें उसी के द्वारा मिला -पर यह मेरी बारंबार विन्ती है कि भूलना कभी नहीं और एक बेर प्रतिदिन मुझ दीन का स्मरण करना. यदि मेरी कोई (किसी) सहायता का कभी काम पड़े तो मुझे खबर पहुँचाने में विलंब न करना-यदिमे रे विना कोई काम ऐसा आन पड़े कि न हो तो मैं सब छोड़ के आ जाऊँगा . दया रखना-देखो-पर बस, अब लोग आगे तो तुम जाव- हायरे वजू हृदय ! फट नहीं जाता और उलटा "जाव" ऐसे बचन कह- वाता है"-इतना कह फिर भी आखें भर ली .

मैं तो निःसह होकर श्यामसुंदर के अंक में गिर पड़ी . श्यामसुंदर ने मुझै सम्हार लिया . यदि वे सहारा न बन जाते तो मैं कबकी भूमि पर गिर पड़ती . श्यामसुंदर ने अपने वस्त्र से लोचनों को पोंछ उरई के व्यजन से व्यजन करने लगे . गुलाब जल की पिचकारी मेरे नैनों में मारी और मुझै चुम्बनों से आच्छादित कर दिया . मुझे कुछ संज्ञा हुई. मैंने अपनी सकपकानी दृष्टि उनके मुखारविंद पर फेकी . बरौनी में मेरे आँसू लटके थे . उन्होंने फिर भी इस बार पलकों का चूमा लेकर उन्हें पोंछ दिया और बोले, "तुम क्यौं रोती हौ आज सब प्रेम खुल गया, तो तुम हमसे दुरा सकी और न मैं ढांक सका . कैसे ढांकता, प्रेम क्या सूजी है जो छिपे, पर यदि हमी तुम जानैं तो अच्छा है . प्रीति प्रकट नीकी नहीं होती." इतना कह उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर बोले-"आज यदि तुम्हारी आज्ञा पाऊँ, तो "प्यारी"-कह के तुम्हें टेसें." मैं चुपकी रही . "तुम कुछ देर तक मौन रहीं, मुझै ढाढ़स हुआ, मैं तुम्हें अवश्य प्यारी कहूँगा, क्षमा करना तो-प्यारी ! प्रानप्यारी ! मैं तुम्हें जीसे चाहता हूँ मोह करता हूँ-सुंदरी मेरे हृदय में तेरी गाढ़ी प्रीति भरी है . जगन्मोहिनी ! मैं तेरे मूरति की पूजा करता हूँ. तू न