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श्यामास्वप्न

एक प्रकार से उत्तर हो चुका--नलदमयंती--दुष्यंतशकुंतला--राधाकृष्ण- विद्यासुंदर--इत्यादि गांधर्व विवाह के अनेक उदाहरण मिलेंगे-द्वापर में विशेष करके--और यह भी तो द्वापरयुग है न जहाँ भगवान् यदुनाथ स्वयं यादवों के सहित विराजमान हैं तो फिर अब क्या रहा--जब कहोगी यदुकुलचंद्र से स्वयं पुछवा देंगे .

यह (इस) ग्राम का नाम भी तो श्यामापुर किसी भले पुरुष ने धरा है- यहाँ की गली और खोरों में यहाँ के वनों में--यहाँ के आराम अभि- राम में -यहाँ के शेल पर्वतों में-यहाँ के नवग्राम और पुरातन ग्राम में-यहाँ के विलासी और विलासिनियों के सहेट निकुंज में यहाँ के नदी नाले और निझरों के वाट में जब तक सूर्य चंद्र हैं श्यामा श्याम- सुंदर के (को) प्रीति की कहानी चलैंगी, तो प्यारी इतनी दूर बढ़ा के अब क्यौं हटती हौ ! वर्गों के संबंध में कुछ दोष नहीं, देवयानी और ययाति के पावन चरित अद्यापि भूमंडल को पवित्र करते हैं . बस यह सब समझ लो-मुझ दीन के अनुराग और भक्ति को क्यों तुच्छ करती हौ यदि हमारी सेवा तुम्हें भली न लगी हो तो उसकी बात ही निराली है-नहीं तो- बस अब आज्ञा दो'-इतना कह मेरे चरणों पर लोट गया. मैंने उसका सिर उठा कर दोनों जावों के बीच में रख लिया. बहुत प्रबोध दिया उन्हें उठाय छाती से लगाया और बोली-"सुनो प्रान- तुम हमारे जीवन धन हौ . इसमें संदेह नहीं-मेरे तुम और मैं तुम्हारी हो चुकी . तुम्हारी प्रीति की परीक्षा हो चुकी-पर शीघूता मत करो-मैं तुम्हें अवसर लिख भेजूंगी-सुलोचना और वृन्दा सहाय करेंगी . सत्यवती न जानै-तब तक न जानै जब तक कार्य की सिद्धि न हो. तो मुझे विदा दो, सोचने का अवसर दो-और मेरे. सुंदर उत्तर का पंथ जोहते रहो-अब मैं जाती हूँ-" इतना कह चलने को उद्यत हुई कि श्यामसुंदर ने मेरे हाथ धर एक बाहु मेरे गले में डाल दिया, अधरों को मेरे अधरों के पास ला बोला-"यदि आज्ञा हो तो एक बार