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श्यामास्वप्न

तापर बहत वयार सुपावन सुरत परिश्रम टारी
जगमोहन सो दुर्लभ सपने सुख संगम बलिहारी।"

इसका मेरे सामने एक चित्र सा लिख गया . श्यामा के विराम लेती ही वह प्रचंडा देवी जिसका वर्णन कर चुके हैं और जो हमें स्वप्न में मंत्र बता गई थी प्रकट हुई; बड़े बड़े स्वेत स्वेत दाँत चमके “दुर्दर्शद- शनोज्ज्वला"--विटप की शाखा से लंबे लंबे बाहु पसार जादू की छड़ी ज्यौंही निव श्यामा की चोटी छुवाया बादल छा गए अंधकार छा गया और वह मनमोहिनी प्रानप्यारी जीवन अवलंब की शाखा श्यामसुंदरी श्यामा लोप हो गई--तिमिर ने सब लोप कर दिया. जिधर देखो उधर अंधकार..

इति द्वितीय स्वप्नः।

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