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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१५८

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श्यामास्वप्न

साल ताल हिंताल तमालन बंजुल धवा पुनागा
चम्पक नाग विटप जहँ फूले कनिकार रस पागा
कंचन गुच्छ विचित्र सुच्छ जहँ किसलै लाल लखाहीं
लता भार सुकुमार चमेलिन पाटल विलग सजाही .
तरुण अरुण सम हेम विभूषित दूषित नहिं कोउ भाँती
वेदी लसत विदूर फटिकमय सलिल तीर लस पांती .
जहँ पुरैन के हरित पात बिच पंकज पाँति सुहाई
मनु पनन के पत्र पत्र पै कनक सुमन छबि छाई .
नील पीत जलजात पात पर विहँग मधुर सुर बोलें
मधुकर माधवि मदन मत्त मन मैंन अछर से डोलैं .
हरिचंदन चंदन ललाम मय पीत नील वन वासै
स्पंदन विविध वदन जगवंदन सुखकंदन दुख नासै.-

हम लोग सब इसी में बैठ गए . मैंने कहा अब पावस की शोभा देखो-

जलनिधि जल गहि जलधर धारन धरनीघर घर आए
पटल पयोधर नवल सुहावन इत उत नभ घन छार .
फरफरात चंचल चपला मनु घन अवली हग राजै
गरजत घूमि भूमि छै बादर धूम धूसरे साजै .
गज कदम्ब मेचक से अंबुद नव लखि नभ में छाए
को न गई पिय वल्लभ लिंग निशि करि अभिसार सुहाए .
श्याम जलद नव सुंदर हरिधनु सुखद सरस मधि सोहे
श्याम सरीर श्यामता हर मनु विविध मनिन जुत मोहै. .
वारिद वृंद बीच बिजुरी बलि चंचल चारु सुहानी
छिन उघरत छिपि जात छिनक छिन छटा छकित सुखदानी
नव तमाल सावन तरु तरलित धीर समीरहिं मानी
विटपन छिपि छिपि जात मंजरी छिन छिन उघरत जानौ .