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श्यामास्वप्न

कच ने भी इतनी सेवा देवयानी की न की होगी . राम और नल को भी सीता और दमयंती के विषय में इतने दुःख न झेलने पड़े होंगे . दुष्यंत भी शकुंतला के लोप हो जाने पर इतने विकल न भए होंगे . लोप ! हाय लोप-यह क्या भविष्यबानी निकली . लोप और कोप दोनों." इतना कह श्यामा रोने लगी . मैं इस विचित्र लीला को देख चकित हो गया . मुझसे कुछ कहा नहीं गया मन चिंता के झूले में झूलने और कुछ और वृत्तांत सुनने को फूलने लगा • पर अब सुनना कैसा अब तो प्रत्यक्ष देखना रह गया था एक तो स्वप्न दूसरे स्वप्न में भी प्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष पर भी परोक्ष, परोक्ष पर शब्द - और शब्द भी कैसा कि आप्त, सर्वथा विश्वास योग्य . रथयात्रा का मेला आया प्राणयात्रा खूब हुई हाँ-- तो रथयात्रा की बात यह जगन्नाथपुरी के मेला का अनुकरण है . श्यामा- पुर में सभी रंग तो होते हैं . श्यामा और श्यामसुंदर इसी व्रज की खोरों में खेलते खाते रहे, पर कच्चे गऊ का माँस कभी नहीं खाया . यह तो बड़ी कहानी है . कोई विश्वासपात्र और मित्र किसी राजा के पास अपने अंगरखे के भीतर छाती के निकट एक लवा को लपेट लेकर गया और जब युद्ध का समय आया बोला “महाराज जो इस जीव को होगा सो आपको होगा." यह कह वह अपने घर आया और उस लवे की ग्रीवा मरोर डारी . बिचारा छोटा सा पक्षी मर गया और उन लोगों ने मिलकर उस राजा का भी वही हाल कर दिया . बस, स्वप्न में भी नीति, स्वप्न में सभी देखा. होनी अनहोनी सभी हस्तामलकी के समान जान पड़ी . यात्रा की सैर हुई, जगन्नाथ जी की पावन झाँकी हुई, पर मैं नास्तिक हूँ यदि नहीं भी हूँ तो लोग तो ऐसा ही समझते हैं . मैं तो शपथ- पूर्वक इस कोरे कागद पर लिखे देता हूँ कि आज लौं मेरे हृदय को किसी ने नहीं पाया. किसके माँ बाप और किसके पुत्र कलत्र, कोई किसी का नहीं, "जग दरसन का मेला है" मिल लो, बोल लो, हँस लो, खेल लो . “चार दिनों की चाँदनी फेर अंधेरा पाख" ~अंत को सब एक राह से निकलेंगे,