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श्यामास्वप्न

नासु देवि वरदानि ! तुही मम दुःख घनेरे
नासु देवि तू अाजु हैं बाधक सुख मेरे ।
नासु देवि हन हनहु हनहु अातुर तेहिं श्राजू
नासु देवि तेहि तोहि साचु जग भगतन काजू ।
करि नासु तासु जेहि रहि न कछु खटका अटका संगमन ।
जननिरूप पै करु दया वापै जो मम प्रानधन ।।४
टोरु तासु भुज प्रथम मथन करि हियरो अातुर
टोरु तासु दुअ जंघ जानुनी करि विषमजुर ।
टोरु जीह गहि तालु दंत सब गिरवहु रानी
भंजि कमर करि अंध ताहि लै जाहु भवानी ।
किलकि किलकि न्यौतो करहु जोगिन अरु बेताल को ।
हिलकि हिलकि लोहू पियहु भरि खप्पर करि भाल को ॥५
मुंड जासु तुअ माल कपालहिं को सुमेरु जनु
अंतराल लसि भाल सुरँग रँग सेल्ही है मनु ।
अस्थि जानु की करहु मनौ तुरही झुरही सी
सिंहनाद करि है सवार सिंहहि सुरही सी।
जिय लै तासु नचावहू रुंड सुंड गज बांधिकै ।
वरदायिनि वर देहु यह देहुं कलेवा साधिकै ॥६
नभ प्रचंड उदंड खंड कर फेकहु बलि दै
दिकपाल न कहं मांस फांस करि ताकह मलि दै।
नासु देवि क्यों करत विलम अवलंब जु तेरो
जगत न मो कह और सहायक नायक मेरो।
बिनवहु तुहिं कर जोर के वैरी कहँ नासहु मलैं
पर कर किरपा रच्छिये नैनपूतरी कहं भले ॥७
यह अष्टक तुअ विरचि वंदना करि कर जोरी
बारंबार तिखार यह वर माँगहुँ थोरी ।