भाषा को उन्होंने गद्य का रूप दिया जिसके कारण वह नितांत अव्यवस्थित और शिथिल हो गई है।
'श्यामास्वप्न' में स्थान स्थान पर भाषा बड़ी ही संस्कृत-गर्भित और तत्सम-प्रधान हो गई है। संस्कृत काव्यों के प्रभाव से कवि ने जहाँ तहाँ जो प्रकृति-वर्णन किए हैं उनमें भाषा संस्कृतनिष्ठ और अलं- कृत हो गई है, परंतु अन्य स्थानों पर इस ग्रंथ की भाषा में तद्भव शब्दों की प्रधानता है जो 'हरिश्चंद्री हिन्दी' की विशेषता है । वर्णन इनके बड़े ही स्वाभाविक और सुंदर हैं परंतु उनमें रीतिकालीन परंपरा की स्पष्ट छाप है। चतुर्थ याम के स्वप्न के प्रारंभ में प्रभात का वर्णन करते हुए कवि ने खंडिता नायिका के विषाद और व्यंग्य को ही प्रधा- नता दी है, उसका यथार्थवादी चित्रण वह नहीं कर सका । सच तो यह है कि जगमोहन सिंह भाषा, भाव, वातावरण और वर्णन-शैली सभी दृष्टियों से रीतिकालीन हैं, उससे ऊपर वे कहीं नहीं उठ सके । आधु- निक युग की आधुनिकता का प्रभाव उनके साहित्य में बहुत ही थोड़ा है।
आधुनिकता का जो थोड़ा सम्पर्क इस गद्य-काव्य में प्राप्त होता है वह उस विचार-धारा में है जिसके अनुसार कमलाकांत प्राचीन शास्त्रों के रचयिता ब्राह्मणों के प्रति अपना विद्रोह प्रकट करता है :
ब्राह्मणों ही के कर में कलम था मनमाना जो आया घिस दिया, राजाओं पर ऐसा बल रखते थे कि वे इनके मोम की नाक थे, या काष्ठ पुत्तलिका जिनकी डोर उनके हाथ में थी.
कमलाकांत का यह विद्रोह केवल इसलिए है कि वह क्षत्रियकुमार होकर ब्राह्मणकुमारी से प्रेम करता है विवाह का अभिलाषी है और अभिलाषा के कारण उसे बंदीगृह में डाल दिया गया है। वह स्वच्छंद प्रेम का समर्थक है और प्रेम तथा विवाह के संबंध में प्राचीन शास्त्रों का मत उसे मान्य नहीं है । परंतु शास्त्रों को अमान्य भी कैसे किया जाय ? इसीलिए