पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/३७

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लेखक ने अपने पक्ष का समर्थन प्राचीन काव्य ग्रंथों के ही आधार पर किया है। ब्राह्मणकुमारी और क्षत्रियकुमार के विवाह को देवयानी और ययाति की कथा द्वारा शास्त्र-सम्मत बताया और गंधर्व विवाह की पुष्टि भी प्राचीन ग्रंथों द्वारा किया । श्यामसुंदर ने जब श्यामा से गंधर्व विवाह की बात उठाई तो वह समाज-भीरु बाला साहस कर बोल उठी:

मान्यवर ! प्यारे ! यह क्या व्यापार है ? यह किस वेद का मार्ग

है, यह किस न्याय की फक्किका है-किस वेदांत शास्त्र का मूल है-

इत्यादि (पृ० ९०)
 

इसके उत्तर में श्यामसुंदर ने कहा :

यदि शास्त्र तुमने बोचा हो तो मैं कहूँ-न्याय, वेदांत और वेदों का भेद यदि तुम जानती हो तो कहो ? मेरी बात का प्रमाण करोगी वा नहीं ? मेरी दशा देखती हौ कि नहीं ? धर्म अधर्म की सूक्ष्म गति चीन्हती हो तो कहो ? सुनो-धन्य है तुम्हारे वज्रमय हृदय को जो तनिक नहीं पिघलता, मेरी ओर देखो और अपनी ओर देखो. मेरी करुणा और अपनी वीरता देखो. वेद शास्त्र की बात का यह उत्तर है-जो मेरे प्रवीन मित्र ने कहा है-

लोक लाज की गाठरी पहिले देहु डुबाय ।
प्रेम सरोवर पंथ में पाछे राखो पाय ।।
प्रेम सरोवर की यहै तीरथ गैल प्रमान ।
लोक लाज की गैल को देहु तिलंजुलि दान ॥

सो यह तो तुम कर ही चुकी हो X X X X X X अब रहा धर्म अधर्म, उसका भी एक प्रकार से उत्तर हो चुका-