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श्यामास्वप्न


प्रथम याम का स्वप्न


सोवत सरोज मुखी सपने मिलीरी मोहि
तारापति तारन समेत छिति छायो री।
मंडप वितान लता पातिन को तान तान
चातक चकोर मोर रोरहु मचायो री॥
कंजकर कोमल पकरि जगमोहन जू
अधर गुलाब चूमि मधुप लुभायो री।
चूकृत सों बैरिन कहा से खुली धों आँख
हाय प्रान प्यारी हाय कंठ ना लगायो री॥

आज भोर यदि तमचोर के रोर से, जो निकट की खोर ही में जोर से सोर किया, नींद न खुल जाती तो न जाने क्या क्या वस्तु देखने में आती. इतने ही में किसी महात्मा ने ऐसी परभाती गाई कि फिर वह आकाश सम्पत्ति हाथ न आई! वाहरे ईश्वर! तेरे सरीखा जंजालिया कोई जालिया भी न निकलैगा. तेरे रूप और गुण दोनों वर्णन के बाहर हैं! आज क्या क्या तमाशे दिखलाए, यह (सोचना) तो व्यर्थ था क्यौंकि प्रतिदिन इस संसार में तू तमाशा दिखलाता ही है. कोई निराशा में सिर पीट रहा है, कोई जीवाशा में भूला है, कोई मिथ्याशा ही कर रहा है, कोई किसी के नैन के चैन का प्यासा है, और जल विहीन दीन मीन के सदृश तलफ रहा है—बस. इन सब बातों का