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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/५०

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श्यामास्वप्न
 

अर्थात्- "ब्राह्मण का मूड़ मुड़वा देना यही दण्ड वध के तुल्य है पर और दूसरे वर्गों का वध केवल प्राण ही लेने से होता है" वाह अच्छा वध है-ब्राह्मणों का अभ्यास तो नित्य ही मूड़ मुड़ाने का है--देखो गंगा के तीर पर हजारों मुंडी बैठे रहते हैं और नाऊ लोग रोज ही उनको मूड़ते हैं.

चाहे कैसहू पाप न किया हो ब्राह्मण को कभी नहीं मारना पर सब धन को बचाकर (अक्षत ) केवल राज से बाहर कर देना चाहिए .

संसार में ब्राह्मण वध से बढ़ कर और कोई अधर्म नहीं है इसलिए इसका वध राजा मन से भी न विचारे--

एतदेव व्रतं कृत्स्नं षण्मासान् शूद्रहाचरेत् ॥
वृषभैकादशा वापि दद्याद्विप्राय गाः सिताः ॥१३०॥११
मारिनकुलौ हत्वा चाषं मण्डूकमेव च ॥
श्वगोधोलूककाकांश्च शूद्रहत्याव्रतं चरेत् ॥१३११११
ब्रह्महा द्वादशसमाः कुटीं कृत्वा वने वसेत् ।।
भैक्षाश्यात्मविशुद्ध्यर्थं कृत्वा शवशिरोध्वजम् ।।७३।११

शूद्र को मारने वाला छः मास ( ७३-८१ ) या तो उक्त व्रत करै अथवा ११ बैल या ११ श्वेत गैया ब्राह्मण को दे-१३०

फिर बिल्ली नेवरा इत्यादि के मारने का प्रायश्चित शूद्रवत् है-तो शूद्र बिल्ली के तुल्य हुआ इस बिचारे का जीव बड़ा सस्ता था परन्तु ब्राह्मण को मारकर १२ वर्ष कुटी बनाकर वन में बसे और उसके मुर्दे के (की) खपरोही में अपनी शुद्धि के लिये भीख मांगे . इससे ब्राह्मणों का कितना मान था जाना जायगा

उसकी प्यारी के पिता के कारण यह बंदीगृह में पड़ा था यद्यपि कृत्रिम दोषों का आरोप भी न था . ऐसे ऐसे बलात्कार प्राचीन समय में