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श्यामास्वप्न

युवक ने कहा "क्या आज मैं यहाँ से छुटू गा" युवा का पीला मुख आनंद में प्रफुल्लित हो गया और मोक्ष की आशा के अंकुर उदय हुए .

जेलर बोला-“हे युवक मैं तेरे मोक्ष का समाचार नहीं लाया परंतु यह कहने आया हूं कि आज जब सूर्य की किरनै तेरी अंधेरी कोठरी को प्रकाश करेंगी तब तक कोई न कोई तुझे तेरे अपराधों का निर्णय सुन- वाने के लिए न्यायाधीश राजपुरुष के सम्मुख ले जायगा इस्ले तू अपने दोषों को मिटाने के लिए तत्पर रह" .

युवा आनंदमग्न होकर बोला “भला आज यह दिन भी तो आया- आप नहीं जानते कि आप मेरे मोक्ष की आशा देने आर हो . मैं अपने अपराधों को भली भाँति सम्मान करूँगा",

जेलर ने उत्तर दिया, "भाई ऐसे व्यर्थ मनोरथों से मोक्ष की आशा मत कर-"आशा वै परमं दुःखं नैराश्यं परमं सुखम्" पर यह तो कह कि तेरे ऊपर कौनसा अपराध लगाया गया है ?"

युवा ने प्रत्युत्तर दिया कि “यह सब कपटनाग की करनी है-उनके मित्र और कृपापात्र कार्याध्यक्ष वसिष्ठ जी की कन्या जो रूप की धन्या थी उसे निकाल ले जाने और बलात् विवाह करने का अपराध लगाया गया है . परंतु मेरा अविचल प्रेम उसके हेतु अत्यंत निर्मल, और अत्यंत निःस्वार्थी था और अद्यापि है . आश्चर्य है कि इतने पर भी मैं ऐसा घात और बलात्कार करने का दोषी हुआ !"

जेलर बोला “क्या तुम नहीं जानते कि उसकी सगाई जनम ही से जगत विदित रत्नधाम के प्रतिष्ठित श्रीमान् वर्णाश्रमाधीश महाराज प्रबोधचंद्रोदय के पुत्र से हो चुकी है ?"

यह तो जानता हूँ पर मुझसे उस्से एक समय समागम हुआ और उसने मुझे केवल कृपापात्र ही नहीं वरन प्रेमपात्र भी बना लिया और पहले (ली) ही वार इस दीन को उसने अपना किया और कोई राजकुमार सा माना" इतना कह युवा ने लम्बी सांस ली . अत्यंत पावन,