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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/६५

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श्यामास्वप्न

श्रोणीभारादलसगमना स्तोकनम्रा स्तनाभ्यां
या तत्रस्यायुवतिविषये सृष्टिराद्यैव धातुः ॥

इतने से उसके सर्वांग का वर्णन संक्षेप हो गया तो भी बिना कुछ कहे रहा नहीं जाता • इसलिए दो चार बातें और भी सुनो . सर्वांगसुंदरी के रूप की कौन प्रशंसा कर सक्ता है ? उपमा कौन सी दी जाय ? जिसे सोचते हैं वही जूठी मिलती है .

"सब उपमा कवि रहे जुठारी, केहि पटतरिय विदेह कुमारी ।।"

( तुलसी)
 

उसके घन अंजन से काले काले केश वेष की शोभा बढ़ाते थे. उसकी अलि अवलि सी बूंघरवारी अलकै मुखचंद्र के ऊपर ऐसी जान पड़ती थी मानौ व्याल के छौने अमृतपान करने की चेष्टा कर रहे हैं . सुंदर सुभग ललाट द्विरद रद की स्वच्छता को लजाता था . बुद्धि और चतुराई का सूचक-मुनि के मन का मूषक-काव्य-कला का आलय-कुशलता का उदय-स्त्री चरित्र का केन्द्र-बुद्धि और विश्वास निर्माण करने का ध्रुव-ये सब बातें ललाट में लिखी सी ज्ञात होती थीं . निशाकर सा आनन प्रभा का आकार-जिसे देखे रमा सागर में श्याम-सुंदर के शरणागत हो वही शेषशायी के साथ रम रही . कमल भी जिसको देख जल में छिप गया . केशपुंज से आवृत उसका मुख जलद-पटल के बीच मयंक की शोभा जीतता था . अथवा मधुकरों की शवली अवली नवली नलिनी के चारों ओर गूंजती जान पड़ती थी . पंकज का गुण न चंद्रमा में और न चंद्रमा का पंकज में होता है तो भी इसका मुख दोनों की शोभा अनुभव करता था . काली काली भौहैं कमान सी लगती थीं . धनुष का काम न था . कामदेव ने इन्हें देखते ही अपने धनुष की चर्चा बिसरा दी . जब से इसे भगवान् शंकर ने भस्म कर दिया तब से यह और गरवीला हो इसी मिस इनसे धनुष का काम