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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/६६

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श्यामास्वप्न

लेता था-विलोचन इन्दीवर पै भ्रमरावली, मुख-मदनमंदिर के तोरन- रागसागर की लहरै-ऐसी उस्की दोनों भौहैं थीं , उसके नैनों की पलकैं, तरुणतर केतकी के दल के सदृश दीर्घ किंचित् चटुल और किंचित्सा लस शोभायमान थीं , नैनों की कौन कहे . ये नैन ऐसे थे जिस्में नै न थी , जिन्हें देख हरिणी भी अपने पिछले पाँव के खुरों से खुजाने के मिस कहतीं थीं कि तुम अपने गर्व को छोड़ दो . हृदयवास के आगार में बैठे मदन के दोनों झरोखे-रागसहित भी निर्वाण के पद को पहुँचाने वाले. कान तक पहुँचने में अवरोध होने से अपने लाल कोयों के मिस कोप दिखाते-अशेष जगत को धवल करते-फूले कमल काननों से गगन को सनाथ करते -सैकड़ों क्षीरसागरों को उगिलते-और कुंद और नीलोत्पलों की माला की लक्ष्मी को हँस रहे थे मानो मन के भाव के साक्षी होकर हृदयगार के द्वार पर अड़े हो .

इसका सुंदर नाशावंश मानों दशन रत्नों के तोलने का दंड अथवा नैन सागर का सेतुबंध, अथवा जोबन और मन्मथ रूपी मत्त मतंगजों का अगड़ है, मानो कंदर्प ने अपनी कला कौशल्यता ( कौशल) दिखाने के लिए धनुष भौहों के कोनों में रूप के दोनों मीन बझा कर नाशादंड पर धर हों अथवा पथिक कपोतों के फसाने के लिए भ्र तराज पर चुन की गोली धरी हों .

अमी हलाहल मद भरे सेत श्याम रतनार ।
जियत मरत झकिझुकि परत जेहिं चितवत इकबार ॥ (बिहारी) (१)

उसके पके बिम्बोष्ट मुखचंद्र की निकटता के हेतु संध्याराग से रंजित है . दंतमणि की रक्षा के सिंदूर मुद्रा को अनुकरण करने वाले, हृदय के राग से मानों रंजित राग सागर बिद्रुम के नवीन पल्लव से उसके अधर पल्लव थे.


१. यह दोहा बिहारी का नहीं रसलीन के अंगदर्पण का है।