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पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/७१

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श्यामास्वप्न

रहती हैं. ये दोनों ऐसी जान पड़ती थीं मानो इसकी भगिनी हों, क्योंकि बोल चाल मुख का बनाव अंग का ढाल--विमल मयंक सा आनन--वस्त्र और आभूषण सब तद्विषय के सूचक थे. मुझे इनकी मुसक्यान बड़ी सुंदर लगी. एक तो ११ और दूसरी ६ वर्ष की थी. तीसरी इसकी सखी कुछ ऐसी रूपवती तो नहीं थी, पर हाँ--संगत की आंच लग ही जाती है--देह इसकी गोरी--मानो छोटे छावले की छोरी हो.

गजराज सी चाल- --गले में चमेली की माल-बड़ी चतुर पर मदनातुर--गाजमुनीवाल--तौभी मन्मथ के जाल को लिए-- "मिस्सी के वदनामी का पर खोसे"--अधरों को द्विजों से दबाए-- दातोंकी बत्तीसी खिलाए सुमार्गसे कुमार्ग पहुंचाने की मशाल-दुष्टपथ की परिचारिका, विलासियों की सहचारिका--द्रव्य के लिए तन और मन की हारिका--सुमतिवाली बालाओं के मन में कुमति की कारिका- "वुढ़ियाबखान" सी पुस्तकों की सारिका--अपने भक्तों पर जीवन की हारिका--अच्छे अच्छे कुलों का चौका लगानेवाली--अभिसारिकाओं की नौका-ऐसी प्रगल्भ मानौ डौका-मदनपाठशाला की बालाओं को परकीयत्व धर्मशास्त्र सिखाने की परिभाषा--'परपतिसंगम' रूप को कंदर्प व्याकरण से सिद्ध कराने वाली-रति वेदांत की परिपाटी सिखाने- वाली--सुमति-लोप-विधायक सूत्र को कंठ करानेवाली--कुपंथसरिता की सेतु-मदनगीता महामाला मंत्र की ऋषि--सुरति सिद्ध कराने की आचार्य-कामानल में हवन कराने को होता-परपुरुष आलिंगनतीर्थ में उतरने की सीढ़ी--संभोग की शिला-स्थूल काय--बलिष्ठ जंधा- सिंदुर रहित माँग--कंकन शून्य हाथ-- --स्वेत दुकूल पहने-ऐसा स्वांग किए उसी नववधू के पीछे खड़ी है.

ये सब गुण उसके प्रत्यंग देखने से प्रकट होते थे . ऐसी ही सखी कुलवधू को लकार लोप का आकार बना देती है. ईश्वर इनसे बचावै.