पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१०१

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श्रीभक्तमाल सटीक। वार्तिक तिलक । श्रीविभीषणजी ने "श्रीराम नाम" लिख के उनके मस्तक पर श्रीकरकमल से भावपूर्वक रख के वध से बांध दिया, और कहा कि इस 'श्रीराम' के प्रताप से लोग संसारसागर से पार हो जाते हैं, सो इस समुद्र के जल को तो आप बिना प्रयास ही पार हो जाइयेगा।" उनके सच्चे भाव और विश्वास से वह मनुष्य जल में स्थल की नाई चलके उसी ठौर पहुँच गया कि जहां संयोगवश वही जहाज लौटके भा लगा था। उन लोगों ने इसको देखके पहिचाना और उसके शरीर के तेज तथा अवस्था को दिव्य पाया। पूछने पर उसने अपनी सब कथा और श्रीविभीषणजी की भक्ति कह सुनाई । सुनके सवको अति प्रानन्द हुआ बड़े विनय से उसको जहाज पर चढ़ाके क्षमा मांगी। प्रसन्न होके श्रीराम नाम का प्रभाव उन सबोंसे कहा वरंच समुद्र में कूद के दिखा दिया कि जल में उसका पांव तक भी भीगा नहीं। अथवा (ऐसा भी कहते हैं कि), उसके पास अनमोल रत्नों की गठरी देखकर नौकापति को लोभ प्रबल हुआ, उसके ये ढंग देख के उसकी माया से बचने के निमित्त यह मनुष्य पुनि जल में कूद पड़ा और यों चल दिया जैसे कोई सूखी धरती पर सहज ही में चले ॥ ___ इस प्रभाव को देखके, "श्रीसीताराम" नाममें सबों को श्रद्धा और प्रतीति उपजी,और अतिप्रीतिपूर्वक जप के सबके सवसंसारकेपार हो गए। (२१) देवी श्रीसवरीजी। समस्त प्रेमी भक्तों में शिरोमणि रूपी श्री "सर्वरी" जी, किसी हेतु से सवर (भिल्ल) जाति में उत्पन्न हुई, परन्तु बालपन से ही इनकी दशा तथा मति लोक से विलक्षण ही थी । जब विवाह योग्य अवस्था इनकी हुई, तब माता पिता उसके प्रबन्ध में उद्यत हुए और सम्बन्धी लोगों के भक्षण के लिये, बहुत से जीव, इकट्ठे किये । इन्होंने विचारा कि “ओह ! मेरे निमित्त इतने जीवों का वध होगा। धिक् इस लोक के भपंच को हैं रात्रि में आपने उन सब जीवों को छोड़ दिया और उसी रात आप