पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

m ann- MPAMJMDHunta moHAMAAR Indianmar atramAARAMMINI-444 Mantr भक्तिसुधास्वाद तिलक। है, और वैसे ही प्रभु ने श्रीमातु कौशल्याजी महारानी के पवाए भोजनों से भी अधिकतर मीठे स्वादिष्ट मानके उन फलों को पाया। इस प्रेम की जय हो और इस प्रेमभाव ग्राहकता की जय ।। "घर गुरु गृह ससुरारि प्रिय, सदन पाय पहुनाय ! सबरी फल रुचि माधुरी, कहुँ न लही रघुराय ॥१॥ प्रेम पगे चखि चार फल, कौशल्या के लाल। भक्तन की कवरी मणी, सवरी करी कृपाल ॥२॥ अधिक बढ़ावत, आप ते, जन महिमा, रघुवीर । तुलसी, सवरीपदरज से, शुद्ध भयो सरनीर ॥३॥" (२२) खगपति श्रीजटायुजी। (४७) टीका ! कवित्त । ( ७९६) "जानकी” हरण कियो “रावण” मरण काज, मुनि "सीता” वाणी “खगराज” दौड़ो आयो है। बड़ी ये लड़ाई लीन्ही, देह वारि फेरि दीन्ही, राखे प्राण, राम मुख देखिबौ सुहायो है ॥ आए थापु, गोद शीशधारि हग धार सींच्यो, दई सुधिलई गति तनहू जरायो है । “दशरथ”वत मान कियो जल दान, यह प्रतिसनमान, निजरूप धाम पायो है ॥३८॥(५६१) वात्तिक तिलक। पक्षियों के राजा महाभक्त श्रीजरायुजी ने अपना तन भी भगवत् के निमित्त अर्पण कर दिया। जब रावण अपना मरना प्रभु के शर से संकल्प करके उसके निमित्त श्रीमाया सीताजी को हर के ले चला, तो भापकी भार्तवाणी और विलाप सुन के सहायता करने को उक्त श्रीभक्त- राज महाराज अति शीघ्र पहूँचे । भाप जगविख्यात निशाचर- पति रावण से बहुत बड़े, गवण ने भी जाना कि किसी से काम पड़ा। । जब उस दुष्ट ने भापके दोनों पक्षकाट डाले तव मापने अपना शरीर प्रभुके निमित्त न्यवंबावर कर दिया, परन्तु श्रीचक्रवर्तिकुमार महाराज के प्रिय । दरशन के हेतु प्राण रक्खे हुए प्रभु का स्मरण कर रहे थे।