पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१२०

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4 4 INEPATAIrantirintineIAL +MMinbin INRNA -140-Intrumnir+MAND A LAntra भक्तिसुधास्वाद तिलक । अनूठी घटनाएँ ऐसी ही विलक्षण हैं, कि जिसमें नींद भालस भूख इत्यादि बाधायों का तो कहना ही क्या है, जागरित स्वप्न सुषुप्ति अवस्था- पर्यन्त भी अपना २ निरादर देखकर अन्तःकरण और वाह्य इन्द्रियों से अपना शासन आप ही उठा लेती हैं। (५९) टीका । कवित्त । (७८४) बात सुनी रानी और, राजा गएनई ठौर, भई सिर मोरे, अब कौनवाकी सर है। हमहूँ लै सेवा करें, पति मति वश करें, धरै नित्य ध्यान, विषय बुद्धि राखी घर है ।। सुनिके प्रसन्न भए अति अम्बरीष ईस लागी चोप, फैल गई भाक्ति घर घर है । बढ़े दिन चाव, ऐसोई प्रभाव कोई, पलट सुभाव होत आनँद को भर है ।। ५० ॥ (५७६) वार्तिक तिलक । यह वृत्तान्त और सब रानियों ने सुना कि नई रानी के समीप में जाके प्रभु का नाम गुण गान सुनते २ राजा ने आज रात्रिभर, विता दिया, अतएव वह तो अब सबकी शिरोमणि हो गई, अब उसकी समा- नता हम सब कैसे कर सकती हैं । तब सबों ने यह विचारा कि महाराज यदि श्रीभगवतसेवा भक्ति ही से प्रसन्न होते हैं तो हम सब भी क्यों न भगवत सेवा करके प्राणपति को अपने वश कर लें। ___ सब रानियों ने ऐसा ही किया, विषयात्मक बुद्धि को अलग रखके केवल भगवतसेवा पूजा गुण गान और रूप अनूप के ध्यान में ही दिन रात बिताने लगीं। उन सबों की भक्ति को भी उनके स्वामी श्रीअम्बरीष- जी सुनके बड़े ही प्रसन्न हुए। और उन सब रानियों के हरिमन्दिरों में भी जा जाके उनको वैसा ही आनन्द देने लगे। . महाराज की यह रीति समस्त पुरवासियों ने सुनी, तब तो नगर भर के लोगों को भगवद्भक्ति में अतिशय भाव चाव उत्पन्न हुआ और घर घर में भक्तिकल्पलता फैल फूलके फलयुक्त हुई । इस प्रकार महाराज श्री- अम्बरीषजी के घर नगर तथा देश में दिन दिन प्रति प्रेमभाव भक्ति की वृद्धि और उन्नति हुई । देखिये, परम प्रेमवती एक रानी की भक्ति के