पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१२५

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8BUMendingraturdardusampatte4- JAMMUHAMMAR १०.६ श्रीभक्तमाल सटीक। . “जाकी सुरति लगी है जहां । कहै कबीर सोपहूँचै तहाँ॥" ( ६४ ) टीका । कवित्त । ( ७७९) देख्यो श्याम भायो मित्र,चित्रवत रहे नेकु, हितको चरित्र, दौरिगाइ गरे लागे हैं। मानो एकतन भयो, लयो ऐसे लाइ छाती, नयो यह प्रेम, छूटै नाहिं अंग पागे हैं । भाई दुबराई सुधि, मिलन छुटाई ताने, आने जल रानी, पग धोए भाग जागे हैं । सेज पधराइ, गुरु चरचा चलाइ, सुखसागरबुड़ाइ, आपु अति अनुरागे हैं ॥ ५५ ॥ (५७४) वार्तिक तिलक । श्रीश्यामसुन्दरजी ने देखा कि मेरे मित्र आए, तव प्रेमानन्द की वि. वित्रता से कुछ काल तो अपनपौ भूलके चित्रवत जहां के तहां रह गए, फिर दौड़के अति विह्वल होके मित्र के, चरित्र में पगे, नेत्रों में आंसू भर सखा (सुदामाजी) को अपने कण्ठ में लपटा, और इस प्रकार से अपने हृदय में लगा लिया कि मानो श्याम-सुदामा एक ही मूर्ति हो गए एवं, इस लोकोचर प्रेम के वश होके परस्पर अंग ऐसे पग गए कि छुड़ाए से दोनों छूटते नहीं । फिर श्रीश्यामसुन्दरजी को यह सुधि भागई कि “मेरे मित्र अति दुर्बल हैं, सो कहीं इनको क्लेशन हों",तब आपने छोड़ दिया। ___ हाथ में हाथ मिलाए हुए रंगमहल में लाए, श्रीरुक्मिणीजी जल और थार लाई, आपने अपने करकमलों से उनके चरणकमल धोए, और कहा कि आज मेरे धन्य भाग्य हैं । सवैया । "ऐसे बेहाल बेवाइन सो भए कंटक जाल गुंधे पग जाए। हाय सखा । दुख पाए महा, तुममाए इतै न कितै दिन खोए॥ -देखि सुदामा की दीन दशा करुणा करिके करुणामय रोए। पानी परात को हाथ छुयो नहि,नैनन के जलसों पगधोए॥ (श्रीनरोत्तम कवि) ले जाके निज दिव्य सेज पर विराजमान करके, कुशल छ, श्रीगुरु- गृह में जो इकट्ठे पढ़ते थे सो उन दिनों के चरित्र की चरचा चलाके,