पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१२९

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". .. ........ . । श्रीभक्तमाल सटीक । लड़कों के साथ २ उन ब्राह्मणों के मुखिया पण्डित के सामने पाके उनको श्रीचन्द्रहासजी ने प्रणाम किया। उसी समय धृष्टबुद्धि ने विप्र- वर से पूछा था कि “मेरी इस कन्या को पति कैसा मिलेगा" तब वे श्रीचन्द्रहासजी की ओर अंगुल्यानिर्देश करके कह उठे कि “यही बालक तेरी इस कन्या का पति होगा! हम यह भावी निश्चय जानते हैं।" सुनते ही, वह प्रधान लज्जा ग्लानि में डूब गया ॥ (६८) टीका । कवित्त । (७७५). पस्यो सोच भारी “कहा करौं ?" यौं विचारी, “अहो ! सुता जो हमारी, ताको पति ऐसो चाहिये । डारौं याहि मार, याको यह है विचार" तब बोलि नीचजन, को “मारो, हिय दाहियै” ॥ लैकै गए दूर, देखि बाल छविपर, "हम योनि परै धूर, दुःख ऐसो अवगाहियै” । बोले अकु- लाय, “तोहि मारेंगे, सहाय कौन ?” "मांगौ यक वात 'जव कहाँ तव बाहिय"॥५६॥ (५७०) ___वात्तिक तिलक । उसके मन में बड़ाभारी सोच हुना कि “अव क्या करना चाहिये ?" तव धृष्टबुद्धि ने निज भ्रष्टबुद्धि से ऐसा विचार किया कि “इस बालक (चन्द्रहास) को मार डालना चाहिये ।बड़े आश्चर्य की बात है ? क्या मेरी बेटी को ऐसा दासीपुत्र दीन पति होना चाहिये ?" ऐसा अविचार ठीक करके घातक नीचजनों को बुलवाके आबादी कि "इस बालक को देख मेरा हृदय जलाभुना जाता है, इसको ले जाव शीघ्र मारडालो।" वे घातक लोग इनको बाहर बन में ले गए, परन्तु मारने के काल में इनकी अतिशय सुन्दरता देख श्रीप्रभुप्रेरित दया उनके हृदय में आ गई, वे अपने मन में कहने लगे कि “धिक ! धिक!! हमारी जाति कर्म को है, इस पर क्षार पड़े कि ऐसे दुःख झेलने पड़ते हैं," फिर, अकुलाके श्री- चन्द्रहासजी से बोले कि “अब हम तुम्हारा वध करेंगे, बताभो तुम्हारा सहायक रक्षक कोई है ?"॥ इनने उत्तर दिया कि “मैं केवल एक ही बात चाहता हूँ कि जब मैं कहूँ तब मुझपर खङ्ग का हाथ छोड़ना"।